थारू शब्द 'मेघु', 'मेघी' अथवा 'बेङु के नेपाली अर्थ भ्यागुता हुइठ। 'मेघु' कलेक मुसण्डा ओ 'मेघी' कलेक मुसण्डीहे बुझजाइठ। 'मेघा' बरवारके अकारके हरर रङ्के ट्वार-ट्वार बोल्लेसे घाँटीमे बरवार फुलुंगा आकार के फुल्का फुल्ना भ्यागुता हो। यहिहे 'बेङा' फेन कहिजाइठ।
(थारु-नेपाली-अंग्रेजी शब्दकोश २०५४ मे छोट आकारके मुसण्डी भ्यागुताहे 'मेघुट्या' कहेके अर्थागिल बा।) 'मेघा-लोटाई' कलेक पानीके देवता भगवान इन्द्रसंग पानी मग्ना काम हो। यह दोसर थारु भाषामे गोङ्गा लोट्नु फेन कहिजाइठ। वर्षायाममे पानी जोरसे परल बेला किल खेतुवक आँजरपाँजर निक्रन हरड्यार रंगके, आकार मे बरवार मेघुवा बोल्लेसे 'गों-गों' आवाज निकर्ठैं। ओहेक मारे गोङ्गा कहल हो। यह दोसर अर्थमे 'भ्यागुता नाच' (भ्यागुता खेल) फेन कहिजाइठ। मने यी स्टेज बनाके नाच्न कौनो औपचारिक नाच भर नाइ हो । थारू गाउँमे घर-घरे जाके अंगनामे मेघा लोट्न काम हुइठ। ना कौनो बाजा, ना सामग्री, ना शरीरमे कानौ कपडा। मेघी बनके 'नाङ्गा' मेघा लोटाई करजाइठ ।
सांकेतिक रुपमे मेघिनके जोरी पकरके संग-संइगे गोंगा लोटे लैजाजाइठ। युवा, वुह्राइल मनै हुक्रे सामुहिक रुपमे मेघा लोट्ना करजाइठ । जवान मनै रातके अन्धारमे ओ युवा, बालकालिका हुक्रे दुपहरके मेघा लोट्ठैं । सामुहिक रुपमे मेघा लोट्न घरमे अइलेसे घरबेटीहुक्रे गग्रीक पानीसे उहाँहुकन लहवाक परठ । धुरयाइ भुइंयामे उल्डल पानीसे हिल्ला हुइना ओ पाछे अंगना जिल्फुल करैटी मेघा लोट जाइठ । उ बेलाहुक्रे आनी दे कि पानी दे कि गोङ्गा अर्थात् (हे भगवान पानी-आनी जा हुई देउ ) कना माग हो। यी मेघा खेल्ने काम गाउँका सक्ककु घरमे रिता जाइठ । असिक कर्लेसे भगवान ईन्द्र खुशी होके पानी डेठै काना थारु समाज गहिर विश्वास बा । खेती किसानी पेशासे जीविकोपार्जन कर्ना कृषकके लाग सिंचाई अनिवार्य रहठ ।
थारु समुदाय अधिकांश कृषिसे जीवकोपार्जन कर्ना समुदाय हो । जेठ-असारमे पानी नैपरके सुख्खा लागल बेला थारुहुक्रे ईन्द्रहे खुशीपारके पानी परुवाइक लाग असिन तररिका अप्ना जाइठ। आकाशे पानीके भरमे खेती किसानी कर्ना समुदायके बरवार जमात बा नेपालमे । सिंचाईके लाग नहर, सिचाई व्यवस्था कुलुवाक् पानीके ब्यवस्था नै हो । असीन अवस्थामे थारु समुदायके सदस्यहुक्रे किसान खेती किसानके लाग मेघा लोट्न बाध्य हुइठैं । पानी परुबाइक लाग खेलजिना असिन खेल अब थारु संस्कृतिके एक ठोस अभिन्न अङ्ग बनगिल बा। असिन कलेंसे इन्द्र भगवान् खुशी होके पानी परुवाइठै ओ कृषकहुक्रे खुशी साथ रोपाइके काम कर्ना अवसर पैठै काना जनविश्वत बा । पानी पर्न प्रकृतिके रीत, नियम हो।
वातावरणीय अवस्थासे मौसम अनुसार के सुख्खा ओ वर्षा हुइठ । यी थारु समुदायके घरमे किल नाई । दुनियाँभर हुइठ, हिइती आइल बा । प्रकृतिके नियमके आधे केक्रो कुछ नै लागत । यहाँसम कि भगवान शिव फेन प्रकृक्तिके नियहे बद्ले नैसेक्ठै कहिज़ाइठ। मेघा लोट्न संस्कृति संग एकठो पुरान परंपरागत थारु किंवदन्ती जोरल बा । जौन थारु समुदायके पुर्खाहुक्रे सुनैठै । ओहेक मारे विश्वासमे मेघा लोट्न काम हुइठ। पानी पर्ना विश्वास कर जाइठ।
एकदिन भगवान शिव ओ पार्वती शैयर करे पृथ्वीमे निक्रठैं । एकठो किसान चर्कउवा घाममे दुपहरके असीन-पसिन होके खेतुवामे काम करटी रहठ। उहिहे देखके भगवान शिव मनैनके भेष बनाके उपस्थित हुइठै। किसानहे सम्झैना प्रयास करठै । 'दुपहर घाममे खेतुवा जोट्लेसे नैहुई, पानी परी तब काम करबी' शिव सम्झैना प्रयास करठै। किसानहे उ बात सुनके झोंक लग्लिस। अपन डगर नामक लाग कहल। शिव फेन प्रयास कलैं । 'आज पानी नैपरी, काहे अत्रा मेहन करती ?' उ सुनके किसान बहि ओहोर हेरठ। सुइय... सास फेरटी माठेक पसना पोछट। कपार खुन्ज्यती कहठ 'आज रातके पानी परी।' किसान के बात सुनके शिव हाँसी थामे नै सेक्ठै ।
बड्री ओहोर हेर्ठैं ओ कठैं 'जिउ जर्ना हस घाममे परी काना टोहार मुर्खता हो।' किसान शिवहे भगवान हुइटै कहिके चिन्ले नैरठै। एकठो मनैया सोचके उहिहे रातके पानी पर्न शर्त राख्ठैं। शिव किसानके शर्त सहर्स स्वीकार्ठै । ओत्रा वातपाछे भगवान शिव पार्वतीसंग सिधे पानीक देवता इन्द्रहे भेटे चलजिठै। इन्द्रहे भेटके रातके पानी नैपर्ना आग्रह करठै । शिवके आग्रहमे इन्द्र कहठैं "भगवान" मै चाहके पानी पराई ओ नैपराई सेकम। पृथ्वीमे मेघी बोललपाछे महिन पानी पर्ना बाध्यता आजाइठ । अप्ने जाके मेधीनहे रातके नैबोलक लाग आग्रह करी।"
शिव सिधे पृथ्वीलोकमे आके मेघीनसे भेटके आज रातके 'ट्वार-दुर्र' करके नैबोलक आग्रह करठै। शिवके बात सुनके मेघी आग्रह करठै "भगवानु जोगिनिया आपन पुछीमे बत्ती बारलपाछे हम्रहीन ट्वारसे बोलहिक परठ। यी नियम हम्रे टुरे सेक्ब। अपने जोग्नीन् ठन जाके पुछीमे बत्ति नै बारेक आग्रह करी" आग्रह करी । भगवान शिव फेरसे जोग्नीन् संग भेटेथै। जोग्निन्हे भेटके रातके पुछीमे बत्ती नैबारेकटन आग्रह करठै। शिवके बात सुनल पाछे 'हुजाई भगवान' कहेके विश्वास देहुवाइठै। अत्रा हुइलपाछे शिव शर्त जितजाई कहे मनमने सोच्ठै। ओहोर 'पानी परी कि नाई' कहके किसान बेचैन हुइटी रहठ। रातके ओहिहे हेगास लग्ठीस। गाउँघरमे बिजुली बत्ती नैरना । साँप विच्छी जसिन किराकाटीन्के फेन ओत्राही डर ।
रातके कयाकुचिल अंध्यारहे छलेक् लाग हातमे मट्टितेल्हा ढेबरी लेके हेगे खेतुवामे निक्रठ। (गाउंघरमे हेग्न शौचालय नैरहठ। खेतुवके मेरुवामे हेग्ना प्रचलन रहठ।) दुर से टुकी बरलहे मेघी सोच्ठै जोग्नी पुछीमे बत्ति बरलै । मेधी ट्वार-ट्वारं, दुर्र-दुर्र कहिके बोलक सुरु करठै। एक ठाउके मेघुवा बोलल सुनके दोसरके मेघी फेन बोल्ना सुरु करलै। क्रम बहटी गैल ओ मेघीनके बोलाइसे इन्द्रके ध्यान खुलाजाइठ । पृथ्वी लोकमे पानीके आवश्यकता हुइल महशुस करठै । कुछ बेरमे मेघ गर्जनसहितके भीषण पानी पर्न हुइठ ।
कैलाशमे ध्यानमग्न भगवान शिव मेघ गर्जनके' पानी परल सुनके अचम्मित हुइलै। प्रकृतिके नियमे खलबल्याइना आपन प्रयास प्रति उहाँ लज्जित हुइलै । एकठो सामान्य किसान संग उहाँ हार स्वीकार करलैं । ओहोर किसानहुक्रे खुशी साथ खेतुवामे काम करे पैठै । असिके थारु समुदाय पानी किंवदन्ति बा । यह विश्वासहे टेकके थारु समुदायमे मेघा लोटाई करजाइठ । सुख्खायाम लाग्टी किल यी काम हुइठ । अब्बा रोपाई कर्नामे पानी नैपरके किसानहुक्रे समस्यामे बाटै । यहे किंवदन्ती ओ विश्वास लेके थारु गाउँमे मेघा लोटाई (भ्यागुता खेल) खास हुइल हो।
तुलनात्मक रुपमे पानी कम पर्न मौसम विज्ञान विभाग आँकलन कर्लेसे फेन थारुहुक्रे आपन परंपरागत प्रयासहे जारी राख्ले बाटै। यहि किसानहुक्रे आपन विश्वासके जित कहेके अर्थैठै । पानी पर्न हुइलपाछे मेघा लोटाइके बेला छोपके ढारल मेधिनहे सामुहिक रुपमे लदिया, तलाउ, या कुलुवक् पानीमे जाके थारुहुक्रे छोर डेठै। मेधिनके पूजापाठ करके मीठ-मिठ खवाँके धन्यवाद सहित पानी मे सही सलामत छोरठैं ।
- लक्की चौधरी
साभार- हरचाली त्रैमासिक
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