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थारुन यमलोक में छुट्टी नाइहो

 

थारुन यमलोक में छुट्टी नाइहो


थारुन यमलोक में छुट्टी नाइहो


कुछसाल पहिलेक बात हो । एकठो गाउँक एक मनैया डन्लपसे चोटाजाइथ । सिर्फ चोटाइथ किल नाइँ, उ बहुत समय बेहोश फे परल रहथ। अब किसनवा मरगिनै कहके घरेक मनैनमे रुवावासी मचजाइथ। रोइत सुनके अरोसपरोसके मनैकिल नाहीं, सारा गाउँक मनै जुटजिथें। सबजाने यिहे कहर्थे, हे भगवान यी का हुगिल ? सबजे भगवानसे मनमने प्रार्थना करथै कि भगवान यिहीहे नालैजिहो । यी चलजाई तो घरके रेखदेख करुइया कोइ नाइरही, परिवारके बिचल्ली हुजिहिन । साँझके समय रहथ, किसनवा मरगिनै कहके लग्गे, लग्गे गाउँमे खबर करुइया पुगजिथें। दूर दूर गाउँमे अन्धरहीं खबर कर्ना सल्लाह बनैथें। बेरी खाके बसलहरा मनै फे जम्मा हुजिथें ।


घटनाके जर कलेक धानके डन्लप रहे। धान दाँ-दुंके, डन्लपके तिस्लोर धान दुवारी सोझे अँगनामे ठह्वाइल रहे। धान देंहरीमे भर्ती रहैं। डन्लपके पिंछौढीओर खाली हुगिल रहे, उँप्पर जुन धान पर्ली रहे । तरे टेकानी लगाईक बिसरा दर्ले रहैं। किसनवा ढकियामे ठिक्के धान भरत रहैं कि अइसा डब हुइल, फटकारदेहल, किसनवा बेहोश । रातभर बेहोश !



किसनवाहे सिंह जामल जामल मनै एकठो करीयाकलोठ, भारी भारी मोंछ रहल मनैयक ठे लैजिथै । डरलग्तीक जीउडाल, देखीके भय लग्ना । उ पूछथ यी के हो ? सिंह जामल मनै यमदूत रथै ओ दोसर डरलग्तीक मनैया यमराज रहथ । यमराज पूछथ ओ दूत सब बात बतैथै । यमराज पोठीपत्र हेर्ती कहथ, येकर तो अभिन समय नाइआइल हो । मने अब नैनन्लो, एकघची रहेदेऊ ओ पठादेहो ।


उ समयके दृश्य देखके किसनवा काँप जाइथ । उहाँ करिया कलोठ मनै, थारुनहस् मनैन बहुत मथै, पिट्थैं, तातुल तेलमे डर्थैं, आगीमे धकेल देंथै। किसनवा कहथ महाराज, प्रभु यी तो सजाय पउइया सब थारुहस् बिल्गतै । दूत कथै, थारुहस् बिलगतै नाई, थारुवे होइँ। येइन अभिन बहुत सजाय मिली ? अइसिन् काकरे महाराज ? किसनवा पूँछठ । ओइने कथै, जे जानाजान अन्याय ओ अत्याचार सहठ, बोलेपर्ना ठाउँमे नाई बोलठ, कहेपर्ना ठाउँमे नाईं कहठ, सम्झाईपर्ना ठाउँमे नाई सम्झाइठ, लडेपर्ना ठाउँमे नाई लडठ, भिरेपर्ना ठाउँमे नाई भिरठ, ओकर हस महापापी यी संसारमे कोई नाइहो । महापापी मनै सजायके भागी रथै ।




अतरा कहती दूतहुक्रे उहीहे वापस करे अर्थै । ओजरार हुइलागठ तो सबजे अपन लहैनाखोर ना कपडा लैके आइलग्थै, साँठ निकरना शुरु करथै तो किसनवा थोरथोर चाल करथ । मनै डराई लग्थै । सबके नजर ओकर लाशमे रहंथ। जन्नासुन्ना मनै ओरहाइल कपडा उभुक देशैं। किसनवा जगसे हेरथ । ओइने बोल्कारे लग्थें। उ ओहो, आज बेधब सुतदेनु कहथ । मनैनमे फेनो किसनवा जित्ती बा, जित्ती बा, कहती हल्ला हुइलागथ। किसनवा उठके बैठथ तो देखथ, सारा गाउँक किसनवा उहाँ जम्मा बाटैं । पूछे लागथ, तुहरे काकरे अइलो । किसनवै घटना बतैथै, तब. उ पता पाइथ कि मै बेहोश रहूँ। मिहिन मरल बताके यी सब हुइल हो । 'उ बहुत गम्भिर हुइथ, मनेमने सोंचथ, यदि मोर आत्मा कुछ समय ढिला आइत तो यी देह आज जरजाइत या माटीमे गरजाइत । उ चूपचाप रहजाइठ । मनमने सोचथ कि थारुनके कल्याण कहुँ नाइहो । जहाँ जाउतो दुखे बा । उ गाउँक किसनवनठे कुछनाई कहथ, अतरै कहथ कि खाना खाके एकघचिक अइहो ।




मनै सोच्चै, मरके जिअल बा बिचारा । येकरं पुनर्जन्म हुइस् । खाना खाके अइही परी । कुछ बात हुइहिस् । घरे जिथै तो घरेक मनै पुछे लग्थै, बिना लहिले-खोरले काकरे घुमगिलो । ओइने बतैथें, मनैया तो जिगैलस्, उ मरल नाइरहे, लेलहरा गैल रहे।


खानापिना खाके नातपात सब जम्मा हुइथै, गाउँक किसनवा फे जुट्थै तो बात शुरु कर थ। उ कहंथ "थारुन यमलोक में छुट्टी नाइहो । मै मरके आज जिअल बाटुँ। मै यमलोक पुगके आइटुँ । मै देखके आइटुँ । यमलोकमे फे थारुनके बडा दुःख बातिन्। थारु यिहाँकिल दुःख नाई पाइथोइँ। थारुनके सोझापन, निमुखापन नै थारुनहे यीलोक किल नाई यमलोकमे फे दुःख देहवाइता । उहाँ फे थारु दुःख पाइतैं । यमदूत थारुनहे बारम्बार पुछ्थैं कि जब तुहुनपर अन्याय हुइथ तो काकरे नाई बोल्यो ? अत्याचार हुइथ तो काकरे नाई बोल्यो ? बिभेद हुइथ तो काकरे नाई बोल्यो ? तुहुन थातथलो छिन्यै तो काकरे नाई बोल्यो ? तुहुन चेलीबेटी बेचबिखन हुइथै, बलात्कृत हुइथैं तो काकरे नाई बोल्थो ? तुहुन सरकारी, गैर सरकारी कार्यालयमे काम कर्ना अवसर नाइदेठैं तो काकरे नाई बोल्थो ? आदिआदि। थारु नाजवाफ हुजिठैं । थारु अतरै कहठैं कि उहाँ हमार राज नाइहो, पहाडी राज बा। हमरन राज्यके मूल प्रवाहसे अलगथलग कैगिल बा । हमरे अन्याय ओ अत्याचार सहना बिबश बाती महाराज ! तर दूतहुक्रे कहठें संसारमे अन्याय ओ अत्याचार करुड्याकिल पापी नाइहोइँ । अन्याय ओ अत्याचार सहुझ्या झन् पापी होइँ। यी झन् महापाप हो। तुहुन यिहे सजाय हो कहती किहिनो ढिकाइल तेलमे दर्थैं, किहिनो आगीमे धकेल देथैं । किहिनो कोल्हमे पेरे लग्थै । ओइने कहथै, यिहाँ अन्याय ओ अत्याचार करुइया ओ अन्याय ओ अत्याचार सहुइया दुनुहे अस्ते सजाय हुइथ ।" मनै बातसे काँप उठथै । सबजे मनेमने सोंच्यै यदि अइसिन हो कलेसे अब जौन अन्याय ओ अत्याचार सहगिल ओ नाइसहगिल, अब नाई सहव । उ दिनसे उ गाउँमे अन्याय ओ अत्याचार न कोइ करेलागल कोई सहेलागल । गाउँमे सुशासन छाइलागल । सबजे भलमन्सा, बरघरके रोहवरमे, उपस्थितिमे लोकतान्त्रिक ढङ्गसे छलफल करे लग्नै, न्याय पाइलग्नै। गाउँमे शान्ति छाइलागन ।




उँप्पर जैसिन घटना समाजमे मुश्किलसे घटथ, जिहिन थारु लेलहरा गिल वा लैहरगिल अस्ते अस्ते कहथें । अइसिन घटनाहे बास्तविक रुपमे पुनर्जन्म मानजाइथ । बास्तवमे किसनवक शरीर यी पृथ्वीमे परल रलेसे फे ओकर आत्मा यमलोक पुगगिल रथिस् । उ जौन उहाँ देख्ले रहथ, उहे बात धर्ती वापसीके बाद बतवैलेक बात हो यी ।


तो पाठकवृन्द, बस्तविकता का हो कालेसे अन्याय ओ अत्याचारी कुरुइयाकिल दोषी नायरथै, दोषी नाइहोइँ। जे अन्याय ओ अत्याचार सहथ उ फे दोषी रथै, दोषी होइँ। घुस खउइया ओ घुस देहुइया दुनु दोषी होइँ । यिहे कारणसे थारु सिर्फ यी धर्तीमे, यी ठाउँमे किल नाइँ, यमलोकमे फे दुःख पाइतै । यदि अब यमलोकमे दुःख पैनासे छुटकारा पैना हो कलेसे आजीसे कसम खाई कि "मै अब कौनो के नामके अन्याय ओ अत्याचार नाइसहम । मै अब न यी धर्तीमे दुःख पैम न तो यमलोकमे। हे ईश्वर, मै तुहिन साक्षी राखके कहर्तुं कि मैं अभिन पराधीन रहुँ, मोर समुदाय पराधीन रहे, मोर आदि थातथलो पराधीन रहे। आजसे मै स्वतन्त्र रहम, मोर समुदाय स्वतन्त्र रही, मोर आदि थातथलो स्वतन्त्र रही । जबतक मै स्वतन्त्र नाइहुइम, मोर समुदाय स्वतन्त्र नाइहुई, मोर आदि थातथलो स्वतन्त्र नाइहुई, मै प्राणहे बाजी धरके लरम। मैं आदिवासी जनजातिनहे पाइक पर्ना सक्कु अधिकार प्राप्तिके लग निरन्तर लडती रहम । दलके आरमे जिरहल सामन्तवादहे नाश करम । यी मोर कसम हो। मिहिन महात्मा गान्धी बन्ना नाइहो, मिहिन सुभाषचन्द्र बोस बन्ना बा।"

साभार-हरचाली त्रैमासिक


- दिलबहादुर चौधरी

धनगढी-५ जाईं, थारू नागरिक समाज कैलालीके संयोजक

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