खुशीक् सैलाफ
एमए पास कैके फेन नै काम पैलूँ कैहके जाँर किल पिके दिन कटैना तमान संघरियनके स्थिति डेख्के मही सोग लाग। एमए पास स्वयममे बरा उपलब्धी नै हो का ? पाह्रा कैके जागिरके किल पाछे डौरे परठ का ? वास्तवमे हम्रे आपन जिन्गीहे सकारात्मक या नकारात्मक दुइ मेरके हेर्डी । नकारात्मक तरिकासे हेर्ना मनै जिन्गिम् कुछ नै करे सेक्नु कैहिके चिन्तामे बुरल रठाँ । ओइने आपन जौन जिम्मेवारी पैले रठाँ उही ठिक ढंगसे करे नै सेक्ठाँ, बस हाँठ लग्ठिन निराशा । ओसिन मनै समयसे पहिले बुह्रैठा फेन।
जिन्गीहे सकारात्मक ढंगसे हेर्ना मनैन्के बाते अलग रहठ । आपन पैलक नियमित जिम्मेवारी पूरा कैके, जन्हनलग, आपन समाजके लाग कुछ करे सेकम कि कना चिन्ता ओईने बोक्ठाँ । मने यी अलग बाट हो कि हरेक सकारात्मक सोच रख्ना मनै आपन फाडिल समय समाजसेवम जो लगैठा कना नै हो । मै फे सकारात्मक सोंच लेके नेंगल एक थारु संस्कृति संरक्षणके अभियन्ताके रुपमे आपनहे मन्ठँ ।
जिन्गीक डगरमे व्यक्तिगत खुशी के अवसर कमे आईठ। मने हम्रे छोटछोट खुसीमे फोहाइ जन्लेसे जिन्गी ओस्टे सहजिल बनजाईठ । कभु कभु नैसोंचल खुशीक बहार फे आ जाइठ । अस्टे मोर जिन्गीम २०६८ सालके असार महिनम एक बगाल खुशीक् सैलाफ आइल। असार १ गतेक गोरखापत्र दैनिकमे संस्कृतिक मन्त्रालयक एक सूचना छापल र हे । जेम्ने मही मध्यपश्चिमाञ्चल क्षेत्रसे भाषा साहित्यमे योगदान पुगैलकमे क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार डेना कैहगैल रहे । लगातार आईल संघरियानके फोनके घण्टी दिनभर चैनार लगाइल।
डोसर रोज एसएनभी अस्तराष्ट्रिय संस्थासे थारु गुरुवन्के अवस्थक बारेम पेश करल मोर दुइ लाखके प्रस्तावना स्वीकृत हुइल इमेल आईल । गुरुवनके बारेम बिस्तृत पोष्टा निकर्ना मोर सपना इहिसे पुरा हुइल बा। माने पचास हजारके पुरस्कार के खुशी जत्रा, यी दुइलाखे समाचार ओत्रा नैडेहल।
असारके पहिला अठ्वार जो एसएलसीक् रिजल्ट आईल । जेम्ने मोर बर्की छाई जुनु पहिला श्रेणीमे पास हुइल शुभ समाचार सुने मिलल । ४५ प्रतिशत विद्यार्थी फेल हुइल अवस्ठामे आपन छाई छावा मजा नम्बर नै मजा लानके पास हुइलेसे कऔन अभिभावक खुशी नै हुइ ।
कौनो सफलता पैबो टे मनै बधाईके साथसाथे खुसियाली खवाउ कहठाँ, जौन स्वाभाविक फेन हो । मही भोज खवाईक परल कहुईयनके लाईन लागल बा । यी पङ्क्ति लिखेबेर मही याद आईटा कि सर्वहारी लिखना ते लिखठ, मने ढेरहस अप्ने बारे किल लिखठ, असीन कहुईयनके कमी नै हो। लेकिन मोर तर्क बा, मनै सवसे ढेर चिन्ना आपनहे जो हो, आपन वरपरके समाज जो हो। जब आप बारेम कुछ कहती कुही प्रेरणा देहे सेक्जाईठ कलेसे का नै लिखना ? खगेन्द्र सङ्गौला हस लेखक, रविन्द्र मिश्र हस बीबीसी पत्रकार आपन स्तम्भ चाहे जौन लेखन अप्ने बारे बखान कर्टी लिख्ठाँ, जौन आत्मपरक निवन्धके एकठो ठोस उदाहरण हो। मनै ना टे अप्ने बारेम फेन कुछ लिखे सेक्ठा (ओइनके जिन्गीम लिखे लाइक कुछ चिज नै हुइ फेन सेक्ठिन्) ना टे समाज बारेम, बस् आरोप लगैठा कि फलाने आपन वारेम किल लिखित।
जब मै एक बगाल खुसीके अप्ने अनुभव साटासट करटुँ टे केकर बारेम लिखु ? मै आशा करटुं असीन ढेर बगाल खुशी अप्नेक जिन्गीम फेन आए। कहठाँ, काम करी फलके आश ना करी । जरुर फे जहाँ स्वार्थ हेरके काम कैबी, एकफाले रिजल्टके आश कैवी कलेसे अप्नेन् असफलता हाँठ लागे सेकठ। मने मजा कामेम दत्तचित्त होके लग्वी कलेसे ढिल हुइलेसे फेन अप्नेक कामक मुल्याङ्कन एक ना एक दिन जरुर हुइ ।
असार २९ गते प्रधानमन्ज्त्रीक् हाँठे क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार लेहेबेर खुशीक् मारे हाँठ मिलैना फेन सुद्धी नैआइतेहे । बादमे थारु पत्रकार संघ ओ आदिवासी जनजाति पत्रकार संघ (अनिज) फेन पुरस्कार पैलकमे छुट्टट्टे सम्मान कर्लाँ । मही लागठ, यी सम्मान मोर व्यक्तिगत सम्मान विल्लौलेसे फेन समग्र रुपमे थारु भाषाके सम्मान हो ।
ओ जैटि जैटि: लेखनमे लागल हम्रे थारु समाजके असिन प्रतिभाके खोजी करी, जे समाजके लाग तन मन धन डेले बा, मने ओल्टारेम नुकल बा। आखिर पत्रकारिताके धर्म यीहे टे हो काहुन् । यकर लाग गोरखापत्र थारु भाषा पृष्ठमे लिखुइया, पहुरा, अग्रासन, परगा पत्रिका निक्रुइया किल नाही कभुकाल्ह किल कलम चलुइया संघरियन फेन ध्यान डि । ओराइल।
साभार- हरचाली त्रैमासिक
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