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हेर्ती हेर्ती उ हेरागिली

प्रेम कथा 

जिबनके आरोह अवरोहहे आत्मसाथ कर्ती आघे बहर्ना क्रममे जिन्दगी कहोर लडिया हस बहल टे कहोर पहार हस भट्कल ओ कहोर भिर असक अल्झल । हो आज मोर जिन्डगी कहोर नै सोचल भिर हसक हुईल बा । हो मै जिबनमे जिन्डगीसंग बाँचक लाक कोनो सम्झौता नैकरल नै हो  । कर्नु ढेर सम्झौता कर्नु ज़िन्दगिक संगे मै । तभु मै ज़िन्दगीम कबु फे शान्तीके सास फेरे नैपैनु । हासीखुशी से बैठे नैपैनु । मै धिरे धिरे आघे बहर्टी बाटु ज़िन्दगिक यात्रा समझके ।




शिलासे अकस्माट घोडाघोडीमे भेट हुके मोर जिन्डगीमे एक्ठो लावा मोड लेहल । उ घटनासे फेन एकचो मोर जिन्डगीम धुम्मिल ओ पिडादायी उल्टादेहल बा । शिलासे कोनो समयमे मोर जिन्दगिक सपना साटल रहे । ओसिक हेर्लेसे ओहकार ओ मोर जिन्दगी सुखद् सम्बन्धके पर्याय नै बनल रहे । तर आज मोर सपना धरापमे परल बा । 




शिलक संगे जोरल मोर सपनाके सुन्दर महल एक एक कर्के भटकगिल बा । मोर ज़िन्डगिक डगर भटकगिल बा । आब यहाँसे कहाँ जिना ? महि कुछ पता नै हो । मै अन्यौलमे आघे बहर्टी बाटु । मनैनमे कत्रा हलाल ओ कत्रा ढेर परीवर्टनके चरण एकसे एक कर्टी हुईटी रहथ । काल्हिक मायालु ओ चुल्बुली शिलामे आज 

ढेर परीवर्टन आईल बाटिन । अत्रा मायालु लागीन । तर आज ..., ढेर दिनक पाछे शिलासे भेट हुईल महि कहोर कहोर नै मजा महसुस हुईल टभु फे मै आपनहे सम्हर्नु । 




एक मन टे कहटेहे कहु भाग्जाउ । ओहकार नजर झुक्वाके। तर नैसेक्नु मै ओशिक करे । पलपल महि शिलाके याद सम्झना सटैटी रहथ । तब मै एकचो खोब हेर्थु  । बिरेन्द्र कत्रा परीवरिटन हुईल बातो ना ? एकाएक कानम बजल मधुर आवाज ! घुम्के हेर्ठु ओहे शिला महि हेर्के हस्टी रठी । ठाकल बिरेन्द्र प्यारमे हारल बिरेन्द्र ! ज़िन्दगिक प्रिय चिज हेर्वाईल बिरेन्द्र ! परीवर्तन नै हुके का का हुई टे ! नै कहु कटीकटी

आजाईट मुहमसे यी सब शब्द ।आब टे जिन्दगीक बारेमे लेखाजोखा करे छोर सेकल बाटु । समयके भेलमे मै फे दुबा देहल बातु जिन्डगीहे । बर्खाय़ामके लडिया हो मनैनके जिन्दगी । किनार मोर्के नेगडेहट कबु कहोर टे कबु कहोर । पता नै हो कहा पुग्के ओराईत यी जिन्डगीक यात्रा ?




कहा पुग्के ओराईट मै नेग्ती रहल यी डगर ?  शिला एक्कासी भाबुक हुईली । मनैनके जिन्दगीमे समवेदना ओ संबेगके महत्व हुईठ कहै कबि हुक्रे । तर आज महि ओहे समवेदना ओ संबेगसे सटैटी रहथ ओ सोच्टी रठु मोर प्यारी शिलाहे मजा हुईहिन कना बिस्वासमे बैठल बाटु!


मोर जिन्डगी आजकल कोनो गटी पक्रे नैसेकठो । मै समयके पाईलाहे पछयैईती नेग्टी बाटु । समय जोहोर डौराईट ओहरे डौर्टी बाटु । अथवा कहु कलेसे बहकटी बाटु! शिलासे भेट हुके फे मै बातचिटके क्रमहे बर्हाई नै सेकठु । अत्रैमे एकथो लौधा आके कहल शिला हे ....हलाल करो ना ढ़िला हुगील । तबजाके जाईटु ना कैके शिला महिसे बिदा हुके उ लौधक संग गैगीली । सायद उ लौधा शिलाके जिबन संघरिया हुईहिन । महिसे ओकर चिनजान फे नै करैईली । कर्रा पर्के हुई उ ओशिक कर्ली । हेर्ती हेर्ती उ मोर यी आँखीसे हेरागिली । शिला ...कैके बलैना मन लागल तर मै उ बेलम हिम्मत करे नै सेक्नु ......





बिरेन्द्र चौधरी जलन || काल्पनिक प्रेम कथा



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