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दिल्लीक रमझम || Dilhi ke ramjham

 

दिल्लीक रमझम || Dilhi ke ramjham


दिल्लीक रमझम || Dilhi ke ramjham



बैँस भरल जवानी मे घुम्ना रहर टे रहट टर मै रहर ले नाहि कर ले गैल रहुँ । बाट २०५८ ओरिक हो आझसे करिब २० बरस पहिलक हो । सुल्ने रहु दिल्ली दिलवालन के हो भारत के राजधानी फेन दिल्ली रलक मारे ठोर-ठोर मन फेन लागल रहे । सयम माहोल फेन ओस्टे बरे खराब रहे ठिक्के जन युद्ध       सुरु हुइटहे पाछे हम्रे गैल मे  पुरा चरक गैल । हमार दिल्ली गैलक डु महिना फेन नै बिटल रहे नेपाल मे भारी भारी दु:खड् घट्ना घटे पुगल उ हो राजा बिरेन्द्र के सारा परिवार के हत्या हुइलक । इ खवर पाके आँखिमसे आँस रोके नै सेक्नु सारा मेडिया रेडियो पत्रिका टिभिमे केवल उहे समाचार सुन मिलेलागल रासा नेपाल देश बम बारुड गोला बन्ढुक के अवाज सुन मिल्टा कहिके खवर मिले । एक टो भरखर गैल रहि दिल्ली कवाइल कवाइल लागे । 




कबु नै गैलक गाउँक संघर्या के संगे गैल रहि हमार ठन र्पया फेन कम रहे एक टो बिना काम खोजल बिना पट्टक गैल रहि काम खोज्ना समय लगलक मारे एक हप्टा सम यहोर ओहोर खोब नेगे परल । डु:ख के बाट टे का रहे उ संघर्या एक हप्ता मजासे भाटे नै खओइलस बरे भुख लागे । उ समय मे भिडियो चले २० रुप्या टिकट उहे हल मे पेलाए फेन बाहर निक्रिटे नास्टिक खाइ मिले रहल रुप्या फेन सक्कु ओराई लागल टब उहीँ हे कर्रा पर्लिस एकठो दादा जी बिस्कुट कम्पनी दिल्ली रानीबाग मे काम लग्ली । महिनक छ हजार नेपली टलप डेहम कहल हम्रे भुखक मारे ओ रुप्या नै रहै का खैना कहाँ रना ठर ठेगान नै रलक मारे उहे ठिके बा कर्ना खैना बैठना उहे रहे । 


Kathmandu 



काम भेटैल मारे हम्रे खुशी रहि ओ कबु बिस्कुट कम्पनी ओसिक नै देख्लक मारे आउर खुशी लागे सुरुमे पहिले रहे नै सेक्ना बास ओ गरम लागे ओ १८ घण्टा डिउटि रहे । खेना के कमी नै रहे केक बिस्कुट ओ पोस्टिक काजु बदाम नारिवल किसमिस पोस्टा मुंगफली घिउ आँरा टमाम मेरिक चिज खाइ मिले । बाहर काम नै निक्रे पाके हुइ शरीर फेन डु हप्टा मे रंग फेर लेहल ओ पोसाइ लागल । कम्पनी मे नेपाली कना जम्मा डु जे रहि बाँकी भारतिय रहिंट सुरु मे भासा नै जान्के कर्रा लागे पाछे ढिरे ढिरे मजा लागे । अचानक २०५८ जेठ १९ गते राज दरवारमे रगतके धारा बहल समाचार पूरा डुनिया मे फैलगैल हम्रे सोचे लग्ली आब हमार देश के का हुइ राजा पारिवार ओरागैलाँ आब हम्रे काहाँ जाब । 




धिरे धिरे मन सन्त हुइल घरक मनैनके हाल सुनु बरे डुख लागे  अपने मनैन हे मारल सुनु आउर नै मजा लागे । जब युद्ध बिराम हुइल टे घरे आइनु टब फेन मनेम डर लागे गाउँ सुन लागे अपने डेखल चिन्हल मनै मरल सुनके आउर नै मजा लागे । टर टिह्वार मानके फेन से उहे ठाउँ चलजाउँ काम करे  करिब चार साल सम मै भारत ओर काम कर्नु । उहे ठाउँ बैठके पटा पैनु मोकर के जीन्गी काहो कसिक काम करे परट कत्रा गारि मिलट । कबु काल अपन घर गाउँ सम्झना आके  आँस गिरे काहेकि कम्पनिमे ठिक समय मे कल्वा बेरि खाइ नै मिले । कल्वा १/२ बज जाए ओ बेरि फेन रातिक १२/१ बज जाए बेरि खाइट २/३ बजे । मै सोचु इ मेरिक काम हम्रे घरे करब कलेसे काहे नै प्रगटि हुइ घर परिवार काहे नै सुढरि । घरे रहल मे अल्छि करबो डाइ बाबाके कहल नै मन्बो कुछ कलेसे उल्टा डाइ बाबन पर रिसैबो इहाँ जुन कुकरिनके हस जिन्गि काटे पर्टा सोचु । मै काम करू ओ कुछ रुप्या कमाके घरे जाके कुछ ब्यपार करम । तर मोर रुचि साहित्य लिख्ना रलक मारे मोर हाँठ कलम पक्रे नै छोरल । विभिन्न नाटक कथा लिख्टि रनु । दिल्ली सहर से नेपाल अइनु मने दिल्लीक रमझम उ ठाँक बिकास रहन सहन सब दिलमे बैठ गैल । घरे आके लम्मा समय सम खेटिपाटिमे अपने गाउँ समाज अपन घर परिवार के संग समय बिटैनु परदेश जाके मोर मन मरगैल रहे आप मै कहुँ नै जिम अपने गाउँ घर अपने मनैन संग अपन जल्मल ठाउँ रहिके कुछ करम कहिके अपन मनैन संग हाँस खेल कैके अपन संस्कृटि मे रमाके डिन गुजारा करे लग्नु । करिब दस बरस पाछे मोर जिन्गि करोट लेहल ओ अपन रचना सक्कु किताब मे छपैना मन लागल ओ २०७० साल ओर से विभिन्न पत्रिका पुस्टक मे मोर रचना डेखे पाई लग्नु । अस्टके मोर जिन्गिक यात्रा सु:ख डु:खमे चल्टि रहल मने दिल्लीक सम्झना अभिम दिल मे बा । जब जब दिल्लीक फोटु हेर्ठु उहे दिल्लीक याद आजाइट । 




संगम चौधरी....✍️

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