परदेशी जिन्दगी || Pardeshi jendagi

परदेशी जिन्दगी || Pardeshi jendagi




 बाट २०६० ओरिक हो । जोन समय मै भारतके राजधानी दिल्ली मे रहुँ । सुन्ले रहुँ गाउँ ओ शहरके रहनसहन फरक रहट कहिके । मै कमैना शिलशिलामे गैल मनै एकठो नोकर के दर्जामे काम करे ओ रहे पर्ना । मने जाट्टिके गाउँ हस नै रहे उ देश । सब जे अपन दुनियामे रमाइट हाँसट खेटल डेखजाए   । हम्रे नेपाली काम करुइया किल एक बागाल होके नेंगि घुमि ओ हाँसी खेली टरटिह्वारमे अप्नेअप्ने किल रमेना करि । मजा टे नै लागे मने रात दिन काम करट करट मिच्छावन जुउ हुइलक मारे उहे मजा लागे । 




बाट ढुरहेरिक रोजके हो । जोन रोज कम्पनि हमार बिदा डेलेरहे । हम्रे सक्करहि लहाखोर कैके घुने निकरलि टमाम ठाउँ घुम्लि संघरिया ओइनसे भेंट कर्ली खैलिपिलि नच्लि रमैलि । ओ रंग घाँसिक घाँसा फेन कर्लि । गाउँमे होरि खेल्लक जिउ अक्को मजा नै लागे । गाउँ रहल मे अपन गाउँसे डोसर गाउँ जाके कोन्टि कोन्टा हठ्लैटि होरि खेल्लक् जिउ उहे याड आए । टर्नि बठिन्या ओइनके गालेम रंग मसोरलक याद आइटहे । घर घर जाके फाक खेल्लक ओ जाँर पिलक सक्कुहुनसे खेल्वार कर्टि जाँरक झोर सुरकटि ढुरहेरि खेल्कक झलझलि आइटहे । 




हम्रे अटो मे कहरु बसमे यात्रा करटि होरिक मजा लेहटहि । का करना हो पराइ देश होके फेनहुइ सिकुरके रहे परना मने मनक भिट्टर असिन लग्ना अपन गाउँ रटि टे कत्रा मजा लग्ने रहे । बठिन्यनसे डब्निभिरिया खेल्टि होरी खेल्टि हँस्टि रमैटि नलक जेहडरामे भैंस लोटेहस होरि खेल्टि । जरल कराहिक कर्खा घाँसिक घाँसा कर्टि । एक डोसर हे हेर्के खिट्ठा मार मार हँस्टि । 




अस्टे अस्टे बाट मनेम खेले ओ हम्रे कम्पनि पुग्लि । संझ परगैल रहे मने कम्पनिमे बाजा बोलटहे ओ कुछ मनै नाचटहिट ओ होरी खेलटहिट उ मनै ओरे कोइने हमारे कम्पनिक मालिक के नाटपाट रहिंट । उ बगालेम कुछ जन्नि मनै ओ बठिन्यन फेन रहिंट । ओइन रमाइट डेख्के अपन गाउँक सम्झना अइलस । हम्रे फेन संगे संगे सक्कु जे नाचे भिरडरली ओ एक डोसरके गालेम रंग अवीर घाँसे भिरडेली ।  ओहे करममे मोर लजर एकठो बठिन्यक पर परल । उ बरे गोरहर डेख्ना मे बरे सुग्घुर रहिन  गाल फेन बरे घोटैल डेख्नु । उ कबुकाल कम्पनिम घुमे आइन मालिक के छाइ से । साइड उहे मारे हुइ उ रोज होरिम फेन आइल रहिन मने होरि नै खेलके पंजरे से हेरटहिन । 




मै उ बठिन्याहे अकेलि कवाल डेख्नु ओ चिमचाम निरासमे डेख्नु । साइड उ बठिन्या फेन कोइ केकरो यादमे डुबल बटिन कि कना फेन मोर मनेम लागल । मै डौरट जाके उ सुग्घुर गालेम अवीर घाँसडेनु जब मै अवीर गाँसडेनु टे उ बरेजोर चिल्लेरन ओ मोर पर घुरेरके हेर्लिन । उहिसे पहिले निरास ओ कबाके हेर्टि रहल बठिन्या मोर पर रिसाके चलगिलिन । 



उ बेला महि फेन नै मजा लागल कुछ कोहोर कोहोर मोर मनफेन कहल ठिक नै करले कहिके । उहे रोजसे उ बठिया मोर पर रिसाइल लजरले हेरे लागल । मने मोर कहे होरिक रोज रहे मै का गलट कैनु रंग घस्ना रमैना रोज रहे कहिके मोर मन कहटि रहल । पाछे मै बरे गहिंर से सोच्नु उ बठिन्या काहे रिसाइल हुहिन कहिके । उ बठिन्या डेख्नौस सुग्घुर रेस्मिबाल गोरहर छाला लुगरा फेन सफा घल्ले रना । मै उ बठिन्यक रुपरंग मन परैनु काहेकि उ बरे सुग्घुर रहिन । ढुरहेरि जुन फुहर मे रमैना टिह्वार हो । मजे सुघरे मनै करिया लोठ होजैबो । रुपरंग सिँगार हेराके डर लग्टिक मुह डेखेना होजाइट । कत्रा जहनके केटे छाला फेन बिगार डेठिन रंग । 




अभिन फेन उहे बठिन्या हे सम्झठु होरिक रोज । कत्रा मेहनट कैके उ अपन रुप सँवरले रहल हुहिन । अपन रुपरंग के कत्रा ख्याल कैके उ सुन्दर रुप बनैले रहल हुहिन मै जुन उहे हुकार सुन्दर मुहार मे रंग घाँसके हुकार मन डुखाइ पुग्नु । अभिन फेन मोर मन कहट टै ओकर मन डुखाके ठिक नै कैले । 


ओराइल ।

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